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बचा रहे ढीठता का चुटकी भर नमक लज्जा के अंतहीन समुद्र में बचा रहे ऋतुओं में थोड़ा-सा बचा रहे ढीठता का चुटकी भर नमक लज्जा के अंतहीन समुद्र में बचा रहे ऋतुओं ...
मेरी आँखों का बसंत मेरी आँखों का बसंत
वह नदी मेरी कविता में तभी से। वह नदी मेरी कविता में तभी से।
नहीं ढूँढ़ सकता एक नदी लाख कोशिशों के बाद भी। नहीं ढूँढ़ सकता एक नदी लाख कोशिशों के बाद भी।
और शायद तभी नदी बन पाती है कविता भी। और शायद तभी नदी बन पाती है कविता भी।
एक भारी-भरकम वज़ूद को भारहीन कर खो जाता है एक भारी-भरकम वज़ूद को भारहीन कर खो जाता है
कहा — ‘विदा’ एक दिन नदी ने तरेर कर अपनी आँखें, और मेरी उँगलियों से चुम्बक की तरह चि कहा — ‘विदा’ एक दिन नदी ने तरेर कर अपनी आँखें, और मेरी उँगलियों से च...
काँपती थी अपने ही लावण्य से काँपती थी अपने ही लावण्य से
धरा पर कहीं बाद में प्रेयसी की आँखों में वसंत पहले उतरता है। धरा पर कहीं बाद में प्रेयसी की आँखों में वसंत पहले उतरता है।
सिर धूनता वह रास्ता भी अब वह रास्ता कहाँ रहा ! सिर धूनता वह रास्ता भी अब वह रास्ता कहाँ रहा !