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Arpan Kumar

Others

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Arpan Kumar

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रुदन

रुदन

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दिन भर के

तामझाम के बाद

गहराती शाम में

निकल बाहर

अन्दर की भीड़ से

चला आता हूँ

खुली छत पर

थोड़ी हवा

थोड़ा आकाश

और थोड़ा एकान्त

पाने के लिए

निढाल मन

एक भारी-भरकम

वज़ूद को

भारहीन कर

खो जाता है


जाने किस शून्य में

अन्तरिक्ष के

कि वायु के उस

स्पन्दित गोले में

साफ़-साफ़ महसूस की

जाने वाली

कोई ठोस

रासायनिक

प्रतिक्रिया होती है

और अलस आँखों की

कोर से

बहने लगती है

एक नदी

ख़ामोशी से

डूबती-उतरती

करुणा में

देर तलक


भला हो अंधेरे का

कि बचा लेता है


एक पुरुष के स्याह

रुदन को

प्रकट उपहास से

समाज के ।


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