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Arpan Kumar

Abstract

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Arpan Kumar

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पुरुषत्व

पुरुषत्व

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अंकुराया था

मेरा पुरुष

जिस दिन पहली बार


एक नदी उतरी थी

मेरे अन्दर उस दिन

पूरे वेग से अपने


दुनिया की

सारी नदियों से तेज़

बह रही है


वह नदी

मेरी कविता में

तभी से।


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