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Arpan Kumar

Abstract

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Arpan Kumar

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पुरुषार्थ और समर्पण

पुरुषार्थ और समर्पण

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रच रहा हूँ मैं कविता

नदी पर

पुरुषार्थ और समर्पण के साथ

और शहर के दूसरे हिस्से में

दूर मुझसे


किसी और के पथ में

बह रही होगी नदी

अपनी बाँहें फैलाए


कवि की सीमा कह लो

या इसे मर्यादा नाम दो

कविता तक ही ला सकता है

वह नदी को


और शायद तभी

नदी बन पाती है

कविता भी।


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