वीरान था जो पहले उसे वीरान ही रहने देते, चले क्यूँ गए तुम मेरी ये दुनिया सजाकर। वीरान था जो पहले उसे वीरान ही रहने देते, चले क्यूँ गए तुम मेरी ये दुनिया सजाकर।
मुझे तेरे जिस्म की नहीं तेरी रूह की तलब थी पर तू तो किसी गैर की बाँहों में थी। मुझे तेरे जिस्म की नहीं तेरी रूह की तलब थी पर तू तो किसी गैर की बाँहों में थी।
मैंने उससे कहा..... मैंने उससे कहा.....
मुझे करने दो, है संघर्ष तो सामना करने दो। मुझे करने दो, है संघर्ष तो सामना करने दो।
स्वागत करे फिर से नए उत्कर्ष के लिए ! स्वागत करे फिर से नए उत्कर्ष के लिए !
और शायद तभी नदी बन पाती है कविता भी। और शायद तभी नदी बन पाती है कविता भी।