आक्रोश
आक्रोश
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क्यूँ मैं आज़ादी से जी नहीं सकता,
साँस ये अपनी चैन से खिंच नहीं सकता,
क्यूँ बांध रहे हो मुझे समाज के बंधनो से,
क्या मैं इनसे कभी छूट नहीं सकता ?
क्या पैसा ही ज़िंदगी है ?
क्या पैसा ही हर ख़ुशी है ?
क्या पैसा ही इज्जत और
क्या पैसा ही बंदगी है ?
अगर हाँ,
तो नहीं चाहिए मुझे कुछ
मैं लड़ूँगा,
मैं चलूँगा,
मैं गिरूँगा,
मैं उठूँगा,
मैं फिर चलूँगा,
मैं फिर लड़ूँगा,
अब कभी ना रुकूँगा।
मुझे भरने दो,
आज़ाद हवाओं में साँस भरने दो,
मुझे उड़ने दो,
पंख फैलाये आसमान में उड़ने दो,
मुझे जीने दो,
बाँहें खोल ये ज़िंदगी जीने दो,
मुझे करने दो,
है संघर्ष तो सामना करने दो।