प्रेयसी की आँखों में
प्रेयसी की आँखों में
प्रेयसी की आँखों में ही
मधुमास है
अरमानों के फूल
वहीं तो खिलते हैं
चंचल अदाओं के जुगनू
वहीं तो चमकते हैं।
हर थकान को
वहाँ
कोई मुस्कान मिलती है,
हर प्यास को
कोई बूँद समझती है।
कुछ पिए बग़ैर ही
नशा चढ़ता है
किसी भाँग पिए-सा
बेवज़ह हँसता रहता हूँ
कुटिल चेष्टाओं के नखरे
सारे उठाता हूँ।
शहर की
किसी मधुशाला में नहीं
उसकी आँखों में
ठौर मिलता है,
धरा पर कहीं बाद में
प्रेयसी की आँखों में
वसंत
पहले उतरता है।