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Brijlala Rohanअन्वेषी

Romance Classics Inspirational

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Romance Classics Inspirational

मैं अकेला ---हम अकेला

मैं अकेला ---हम अकेला

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दुनिया की इसी अंधी भाग - दौड़ से, कहीं दूर अपनी बसेरे में रहना चाहता हूँ। मैं खुद को अलग रखना चाहता हूँ।    मैं अकेला रहना चाहता हूँ। मैं अकेला रहना चाहता हूँ।

इस मतलबी दुनिया की अजीबो - गरीब प्रथाएँ ! देती है मन को निर्मम व्यथाएँ! सहते - सहते मैं अब इनको उब आया हूँ। मैं अकेला रहना चाहता हूँ। मैं अकेला रहना चाहता हूँ।

पर कहते हैं अकेलापन ठीक नहीं !मैं भी मानता।मुझे भी अकेलापन में जीने का कोई शौक नहीं !  

मुझे भी किसी हमसफ़र की तलाश थी ! जो अब पूरी हो गई। मैं भी किसी ऐसी साथी को ढूंढ रहा था जो मेरी अकेलापन को दूर कर दे और हम एक - दूसरे का हो जाएँ। जिनमें मेरी उनकी यानि हमारी भावनाएँ मिलकर एक भाव में गूँथ जाए। जो मुझमें घुल जाये और मैं उसमें घुल जाऊँ। दुनिया को कभी पता भी न चले कि मैं, मैं हूँ ? या वो मैं हूँ? मैं वो हूँ ? या वो मैं हूँ ? 

सवाल कबतक था लेकिन जवाब अब मिल गया मुझे ! पर मुझे एक बात का भय -सा बना रहता है ! क्या वो मेरा साथ निभा पाएगी ?क्या वो मेरे लिए इस मतलबी दुनिया से लड़ पाएगी ? क्या वो मेरे तकलीफें को अपना बना पाएगी ? भय साथ बना रहता है जरूर चूंकि बहुतों ने भरोसा जो तोड़ दिया है मेरा ! 

पर अब भरोसा कर लिया उनपे।हम दोनों एक होंगें। होंगें फिर भी खुद को हम इस दुनिया भागम - भाग से बचाना चाहूँगा। हम अकेला ही रहना चाहेंगे। जहाँ हमारे जैसे प्रेमी जोड़े को जोड़कर संग साथ एक अलग दुनिया बसाना चाहूँगा। मैं यानि हम अकेला रहना चाहूँगा। 

खुदा से हमारी मिलन इस जनम क्या? आने वाले हर जनम में कुबूल करवाना चाहूँगा। मन के मंडप में दिल के मंदिर की रोज उसके साथ सात फेरे क्या? चौदह फेरे रोज संग लगाऊँगा। मैं अब भी उसके साथ अकेलापन में जहाँ हम वो रहें हम अपनी दुनिया वहीं बसाऊँगा। सपना वो तो है मेरी, अपनी समर्पण से साकार कर उसे हकीकत अपना बनाऊँगा। उसे मैं अपना बनाऊँगा।।


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