Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत -३४ ;ब्रह्मा जी द्वारा भगवान की स्तुति

श्रीमद्भागवत -३४ ;ब्रह्मा जी द्वारा भगवान की स्तुति

2 mins
416


ब्रह्मा जी कहें प्रभु मैंने आपको 

बहुत समय के बाद है जाना 

आपके सिवा और कोई वस्तु नहीं 

आज मैंने है ये पहचाना। 


अज्ञान दूर सदा रहे है इससे 

जो देखा मैंने स्वरुप है 

 नाभिकमल से प्रकट हुआ जिसके 

अवतारों का वो मूल रूप है। 


ध्यान में मुझे स्वरुप दिखाया 

बार बार मैं नमस्कार करूँ 

चरणकमलों में आश्रय दें मुझे 

स्तुति करूँ और ध्यान मैं धरूँ। 


जब तक पुरुष आश्रय ले ना आपका 

चरणविन्दों में लग न जाये 

तब तक धन,घर और बंधुओं से 

प्राप्त चीजों का शोक सताए। 


लालसा, दीनता और लोभ भी 

सताते हैं तभी तक उसको 

मैं और मेरेपन का दुर्ग्रह 

रहता है,जो दुःख दे उसको। 


निरंतर दुष्कर्मों में रहें जो 

बीमारी, भूख से त्रस्त हो जाएं 

उन सब के कष्ट देखकर 

मेरा मन चिंतित हो जाये। 


आपके भक्त जिस जिस भावना से 

चिंतन करते हैं आपका 

धारण कर लेते हैं आप तब 

वैसा ही स्वरुप फिर अपना। 


आप जग में एक ही हैं और 

सब प्राणीओं की अंतरात्मा 

जो कर्म अर्पण हो आपको 

वो कर्म अक्षय हो जाता। 


यज्ञ, ज्ञान और तपस्या से 

आप की प्रसन्नता प्राप्त करना 

यही है मकसद सब जीवों का 

सबसे बड़ा कर्मफल उनका। 


मनुष्य जब है प्राण त्यागे 

तब स्मरण वो करे आपको 

चाहे विवश होकर ही वो करे 

परमपद को प्राप्त करे वो। 


आप अजन्मा, मैं शरण आपकी 

आप विभक्त हुए तीनों रूपों में 

मेरे,अपने और महादेव के 

उत्पत्ति,स्थिति और प्रलय के लिए। 


प्रजापति और मनुआदि भी 

आप की ही ये हैं शाखाएं 

बलवान काल भी आपका रूप है 

आप विस्तृत होते जाएं। 


आप पूर्णकाम हैं और 

आप को इच्छा ना किसी सुख की 

अपनी इच्छा से शरीर धारण करें 

और विविध लीलाएं हैं की। 


मैं नाभिकमल से प्रकट हुआ 

समाया विश्व उदर में आपके 

एकमात्र सुहृद जगत के 

आप वास करें हर आत्मा में। 


मेरी बुद्धि को आप अब 

ज्ञान,ऐश्वर्य से युक्त करें 

जिससे मैं करूँ जगत की रचना 

जैसी थी ये पूर्व कल्प में। 


चित को प्रेरित करो मेरे ताकि 

मुझे अभिमान ना हो कोई तब 

आँखें खोलिये और मधुर वाणी में 

दूर कीजिये विषाद मेरा अब। 


ये कह ब्रह्माजी मौन हो गए 

देखें भगवान, घबराये हुए वो 

सृष्टि रचना के लिए चिंतित हैं 

गंभीर वाणी में कहा ये उनको। 


तत्पर हो जाएं सृष्टि रचना में 

भागवत ज्ञान का अनुष्ठान करो 

उसके द्वारा देखोगे तुम 

अन्तकरण में सब लोकों को। 


मुझको और सम्पूर्ण लोकों को 

अपने में व्यापत देखोगे 

अपने आप को और लोकों को 

भी तुम तब मुझमें देखोगे। 


मेरी जो स्तुति की तुमने 

उससे हम प्रसन्न बहुत हुए 

अब करो रचना त्रिलोकी की 

ये कह हरी अदृश्य हो गए। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics