Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत-२९ ; उद्धव जी का विदुर को मैत्रेय मुनि के बारे में बताना

श्रीमद्भागवत-२९ ; उद्धव जी का विदुर को मैत्रेय मुनि के बारे में बताना

2 mins
54



उसी समय व्यासजी के मित्र मैत्रेय मुनि भी पहुंचे थे वहां भगवान के वो अनुरागी भक्त हैं श्री हरि ने तब था मुझसे कहा। 

आंतरिक अभिलाषा जानूं तुम्हारी इसीलिए तुम्हे वो साधन दे रहा औरों के लिए अत्यंत दुर्लभ है उन्होंने मुझको प्यार से ये कहा। 

पूर्व जन्म में तुम वसु थे इच्छा मुझे पाने की भी तुम्हे मेरी आराधना तुमने की थी तुम्हारा संसार में अंतिम जन्म ये। 

मृत्यु लोक को छोड़कर मैं अब अपने धाम को जाना चाहूँ तुम मेरे अनन्य भक्त हो भागवत का ज्ञान मैं तुम्हे सुनाऊँ। 

हाथ जोड़ कर बोला मैं तब अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष किसी की भी इच्छा नहीं है चरणसेवा के लिए लालायत। 

लीला आपकी मोहित करे मुझे अपने स्वरुप का रहस्य बताईये ब्रह्मा जी को जो श्रेष्ठ ज्ञान दिया मुझको भी अब वो सुनाईये। 

तब उपदेश दिया कृष्ण ने अपने स्वरुप की परम स्थिति का उसके बाद मैं यहां आ गया विरह में मेरा चित व्याकुल था। 

बद्रिकाश्रम के लिए जा रहा नर, नारायण तपस्या करें जहाँ प्रिय बंधुओं की मृत्यु सुन विदुर जी को शोक उत्पन्न हुआ। 

ज्ञान द्वारा उसे शांत कर दिया उद्धव से फिर विदुर ने पूछा परमज्ञान जो दिया कृष्ण ने पाने की मेरी भी है इच्छा। 

उद्धव जी कहें, इस ज्ञान के लिए सेवा करो मैत्रेय मुनि की प्रभु कृष्ण ने यही कहा था ऐसी ही इच्छा थी उनकी। 

विदुर जी प्रेम विह्वल थे सुनकर प्रभु ने उनको याद किया था विदुर करें कृष्ण गुण वर्णन वियोग का ताप तब शांत हो गया। 

परीक्षित पूछें कि यादव कुल में सभी लोग जब नष्ट हो गए भगवान ने भी ये लोक छोड़ दिया उद्धव जी कैसे बचे रहे। 

शुकदेव जी कहें कि श्री हरी ने बहाना लिया ब्राह्मण के शाप का कुल का अपने संहार कराया फिर शरीर त्यागा था अपना। 

विचार किया जाने के बाद मेरे उद्धव ही हैं वो अधिकारी मेरे ज्ञान को ग्रहण करें जोउनको शिक्षा दे दी सारी। 

लोगों को वो ज्ञान सिखाएं धरती पर ही अभी वो रहें भगवान की आज्ञा से उद्धव जी बद्रिकाश्रम चले गए। 

वहां आराधना करें प्रभु की विदुर जी प्रेम विह्वल रोने लगे उनके चले जाने के बाद वो मैत्रेय जी के पास चले गए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics