खेलौ रे खूब फाग
खेलौ रे खूब फाग
खेलौ रे खूब फाग रंग भरी होरी में ।
पर ना परि जाय गाँठ नेहा की डोरी मेें ।।
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होरी के रंगन में मन कू्ँ रँग डारौ रे ,
प्रेम की फुहारन तन प्रेम तेे पखारौ रे ,
अंतर मत करौ आज कारी में गोरी में ।
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भीजै तन भीजै मन भीजै जन-जन भैया ,
केसरिया रंग रँगै जन-गन-मन की मैया ,
छलकै आनंद आज भाल चढ़ी रोरी में ।
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कंचन सी काया पै टेसू कौ रंग चढ़ौ ,
ढाई आँखर पढ़कै हमनै पुरान पढ़ौ ,
विष प्यालौ पीमैं हम प्रेम की कटोरी में ।
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हरषै मन कौ मोरा सरसै मन सारस रे ,
और पास आओ मन है जावे पारस रे ,
रँगे हाथ पकड़ौ रे नेहा की चोरी में ।
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काजर की रेखा हू नैन लगै प्यारी रे ,
कारौ तिल गालन की शोभा हू भारी रे ,
कारौहू खप जावै कामरिया कोरी में ।