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Dr Arun Pratap Singh Bhadauria

Others

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Dr Arun Pratap Singh Bhadauria

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वेदना के जंगल

वेदना के जंगल

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बम है फुलझड़ी है सीको है अनार है,

चाइनीज झालरों से घर गुलजार है।

खुशियों का आया हर तरफ सैलाब है,

बुधिया की झोपड़ी में खाना नहीं आज है।


भूख से तड़प रहे बच्चे बेहाल हैं,

पत्नी को भी आज डेंगू बुखार है।

काम नहीं मिल रहा आज त्यौहार है,

बधाई के बैनर से पटे बाजार है।


आन लाइन शापिंग से सहमा व्यापार है,

पढ़ा लिखा बेटा भी बेरोजगार है।

गेहूं की कौन कहे महंगी हुई दाल है,

सरसों के तेल की बात बेमिसाल है।


हर तरफ शोर है विकास चारों ओर है,

आंसुओं से भींगी पलकों की कोर है।

कष्ट का अंत है न कहीं छोर है,

वेदना के जंगल में वायदों का शोर है।



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