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Dr Arun Pratap Singh Bhadauria

Tragedy

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Dr Arun Pratap Singh Bhadauria

Tragedy

माँ

माँ

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मेरी आँखें तुम्हें ढूंढ़ती हैं,

कहाँ खो गई हो माँ?

तुम्हारी याद भुलाई नहीं जाती,

मैं तन्हा और अकेला हो गया हूँ।


तुम्हारी मुस्कान और तुम्हारी आँखों का नूर,

मुझे सपनों में भी नज़र आता है।

तुम्हारी आवाज़, जो मेरे कानों में गूंजती थी,

अब  मेरे दिल में गूंजती है।


माँ, तुम्हारी ममता अपार थी, 

तुम्हारी बाहों में सुखी था मैं।

आज तुम मेरे पास नहीं हो,

मेरा जीवन एक खाली पन्ना हो गया है।


माँ,  तुम्हें कहीं भी अच्छा लग रहा होगा,

 पर तुम अपने बेटे के पास आना चाहती होगी।

अब जल्दी आ जाओ, माँ, 

मेरी आँखें तुम्हें ढूंढ़ती हैं।


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