सर्द राते
सर्द राते
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सर्द मौसम है, अब अलाव जलाया जाए
ज़ेह्न से ये दर्द ए मुस्तक़िल हटाया जाए
ज़िंदा हूँ दोस्तों, महज़ मरने के ख़ौफ से
वर्ना क्यों ज़िंदगी का बोझ उठाया जाए
चाहत अगर नहीं मेरी, तो बेक़रार क्यों
ज़ाहिर सा है किस्सा क्यों छुपाया जाए
जवाब जो पाया, तो लाजवाब हो गया
याद कर करके, हर रोज़ भुलाया जाए
रो रो के सरेआम, एक मज़ाक़ बन गया
क्यों नहीं हँस के, खुद को रुलाया जाए
तसल्ली की बातें हों, सुकून मिल जाए
बराह ए करम ,उनको तो बुलाया जाए
