अल्फाज़ मेरे
अल्फाज़ मेरे
मै ....अक्सर दर्द पर ही अल्फाज़ सजाया करता हूं
अंधेरों में छुप छुप कर इन्हें सहलाया करता हूं
भीग जाते है अपने ही अश्कों से जब ये कभी
समेट कर आगोश में अपने बहलाया करता हूं
मै.......अक्सर दर्द पर ही अल्फाज़ सजाया करता हूं!
यूं तो जमाने के भी बहुत जख्म है दिल पर मेरे
इसलिए दिल की बात दिल में ही छुपाया करता हूं
ये रिश्ते .....ये नाते .....बहुत आजमाए थे कभी
अब तो खुद से भी रिश्ता कहां निभा रहा हूं मैं
मैं ......अक्सर दर्द पर ही अल्फाज़ सजाया करता हूं।
जरूरी नहीं दिल टूटने पर ही दर्द होगा "ललित"
बिना खंजर लगे भी तो दिल से लहू निकलता है
तन्हा अंधेरों को मेरी सिसकियों से डर अब लगता है
बारिशों की बूंदों में बहता हुआ अश्क
कहां किसी को दिखता है।
जख्मों पर अपने खुद ही मरहम लगाया करता हूं
मैं......अक्सर दर्द पर ही अल्फाज़ सजाया करता हूं
अंधेरों में छुप छुप कर इन्हें सहलाया करता हूं!!!