अफ़वाह
अफ़वाह
सुनो, वो जो तुम लोग भेजते हो ना, धर्म के नाम पर,
बस्तियां उजाड़ने को, घर जलाने को, दिल दहलाने को।
वो एक दिन तुम्हारे आलीशान महलों में भी आयेंगे,
अपनी मरी हुई रूह, सड़े गले शरीर लिए,
तुम्हारी हैसियत दिखाने को।।
जो तुमने इतने सालों में बोया है,
वही तो अब काटोगे।
जब सब को खून का रंग दिया,
खुद में सिंदूरी कैसे बांटोगे ?
तुमने सोचा, तुम्हारा कहा पत्थर की लकीर हो गया,
तुम्हारा अंधभक्त, उसी लकीर का फ़कीर हो गया।
गले कम पड़ रहे हैं काटने को,
जाओ अपने घर जाओ, अपने करीबी छांटने को।
इंसान को तो बचा लो, बचा पाए नहीं अपने देश को,
और जो इंसान भी ना बचा सको,
संभाल के रखना अपनी साज सज्जा और भेष को।
