यादों का कब्रिस्तान
यादों का कब्रिस्तान
मैं यादों का कब्रिस्तान हूं।
लोग मिलते हैं, यादें बनाते हैं,
और मुझ में दफ़न कर जाते हैं।
मैं भी उन्हें समा लेता हूं अपने सीने में,
एक मखमल का कफ़न पहना के।।
कुछ बातें, कुछ किस्से,
छोड़ जाते हैं मेरे पास,
ये कह कर कि संभाल के रखना।
वापिस आऊंगा तो शुरू करेंगे फ़िर से।
मैं भी जज्बातों में बहकर,
उन किस्सों को, बातों को,
पहना देता हूं इक खूबसूरत लिबास,
और वही लिबास एक दिन, कफ़न बन जाता है,
वो बातें, वो किस्से, "यादें",
फ़िर वो मुझ में दफ़न हो जाती हैं,
क्योंकि, मैं यादों का कब्रिस्तान हूं।।
फ़िर कभी अचानक से, वो अपनी कब्र से बाहर निकलती हैं,
और पूछती हैं कि कहां गए मेरे अपने।
कहां गए जो मुझे तुम्हारे पास छोड़ गए थे ये कह के कि ख्याल रखना इनका, हम वापिस आयेंगे?
और मैं उनका हाथ पकड़ के वापिस ले जाता हूं उनकी कब्र में,
यह कह के, कि वो सिर्फ बातें छोड़ गए थे मेरे पास।
जब तुम समय के साथ यादें बनी, तो तुम सिर्फ मेरी रह गईं,
और इसीलिए तुम दफ़न हो मेरे सीने में, सिर्फ मेरी हो कर।
क्योंकि, मैं यादों का कब्रिस्तान हूं।।
