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Amit Nigam

Abstract Romance

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Amit Nigam

Abstract Romance

पहाड़ों का सलाम

पहाड़ों का सलाम

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सर्द दोपहर, भीगी रातें,

कुछ कही, कुछ अनकही बातें।

मैंने यह ख़त तुम्हारे नाम भेजा है,

तुम्हें पहाड़ों का सलाम भेजा है।।


ये आज भी नहीं भूलें हैं,

तुम्हारी हसीं की किलकारियां।

इन्हें आज भी याद है,

तुम्हारी हर झलक और झाकियां।

मुझसे कह कर, इन्होंने ही पयाम भेजा है,

तुम्हें पहाड़ों का सलाम भेजा है।।


यह कहते हैं कि तुम इन्हें याद नहीं करते,

जाने कितने बरस बीते, इनसे बात नहीं करते।

अपने पेड़ों की घनी छांव का आराम भेजा है,

तुम्हें पहाड़ों ने सलाम भेजा है।।


एक बार आ जाओ, ताकी यह भी कह सकें, कि आख़िरी बार तुम मिले,

एक बार आ जाओ, मिटा दो इनके सारे शिकवे, सारे गिले।

तुमसे एक बार मिलना चाहते हैं, इसीलिए यह कलाम भेजा है,

तुम्हें पहाड़ों ने सलाम भेजा है।।



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