आखिरी बार
आखिरी बार
जाने से पहले आखिरी बार
देखी थी पापा की आँखें
क्षीण-विदीर्ण, थकित-व्यथित
सूनी सी निस्तेज थीं आँखें
कितनी ही अनकही बातों का
अधूरा एक सवाल थी आँखें
कितने अनपूछे प्रश्नों का
अनुत्तरित जवाब थी आँखें
जीवन ज्योति की बुझती लौ
की क्षीण धूमिल प्रकाश थीं आँखें
एक-एक साँस से लड़ते हुए
कर रही हार स्वीकार थी आँखें
अपनों को छोड़ के जाने का
बेबस एक एहसास थीं आँखें
जीवन के अंतिम अध्याय का
दुखद उपसंहार थी आँखें
भूल न पाती हूँ उन "आँखों" को
हर-पल हरदम मेरे साथ हैं आँखें ।