क्या यही मानवता है
क्या यही मानवता है
डूब रहा हो निज समक्ष तो, नहीं बचाते हैं ।
वीडियो मीडिया में देने, खूब बनाते हैं ।
जीवन का नहि मूल्य जानते, खेल रचाते हैं।
लाइक असंख्य देख पोस्ट पर, अति हर्षाते हैं॥१॥
मानव धर्म तजा है नर ने, धर्म जताते हैं ।
वे ही कष्ट पड़े मनुष्य को, खेल बताते हैं ।
अपनों पर जब बन पड़ती है, शोर मचाते हैं।
ज्ञान बघारें दया धर्म का, पाठ पढ़ाते हैं॥२॥
क्या ऐसी होती मानवता? हँसी उड़ाते हैं ।
कष्ट झेलते जीवों पर नर, आँख गड़ाते हैं ।
संस्कार सनातन मानव के, दया सिखाते हैं।
परहित जीवन भर करने का, मार्ग दिखाते हैं॥