नन्ही परी
नन्ही परी
मां की कोख से उतरी एक सुंदर परी थी
आंखों में तेज जितना था,
मुख पर सुकून भी उतना ही था,
पर परिवार का स्वभाव तो वहीं पुराना था,
एक बेटे की आशा थी
ये तो निराशा का दूसरा रूप थी!
बात तो है यह पौराणिक गाथाओं से जन्मी
चाहे द्रौपदी के जन्म के पहले पुत्री को श्राप हो
या उसके उपरांत समाज के गलतियों के लिए
उसे हर बार दोषी करार करना हो
फिर भी मुख पर सुकून के कण पिरोए हुई थी!
द्वापरयुग हो या कलियुग लोगो की सोच
तो अभी भी निष्क्रिय ही है,
यह बेटी जब उड़नाy चाहे तो क्यूं
आखिर क्यूं ? उन काले धागों के बेड़ियां
इनकी क्षमता के साथ दुर्व्यवहार करती है।
मेरे आगे बढ़ने से आखिर क्या आक्रोश है
तुम्हे!
यह अहंकार की खाई में मुझे क्यूं गिरा रहे हो
अकेली ज़रूर हूं पर दुर्बल नहीं हूं
अग्नि का अडिग निश्चय हो,
नदी की भांति सरल हूं,
हवा की तरह जयनी समान हो,
और आकाश की तरह श्रेष्ठ हूं।
अब रास्ता कितना भी दुर्लभ हो,
अपने स्वप्न को गति देन है,
संयम ही मे रा शस्त्र है,
आत्मनिर्भरता भी है मेरा अस्त्र
समाज की विकलांगता होगी ज़रूर
पर निश्चय तो मेरा भी है उतना ही दृंड।