पिता जी
पिता जी
झुक जायेगा पर्वत भी
जब सुनेगा पिता के बाहुबल की गाथा
क्योंकि वो दिखते तो दृढ़ हैं
हमें बिना बताये,पार कराते समुद्र,अबाधा
मरुस्थल से रूखे हैं,ये कहते सभी बार बार
पर न पहुँचने देते अपने पुष्पों को हानि
जैसे खड़ा रहता नागफनी तपती गर्मी में
अनेकों फूलों को कर खुद पर सवार
कहते इनको पत्थर दिल हैं ये
पर तपती गर्मी में देते आराम
आँधी तूफ़ान या बारिश
बचाये रखते परिवार को बनकर खपरैल पाषाण
थक कर मन करता इनका भी कि
लोहद्वार लगा चैन से सो जायें
पर चमकाने उसे घर के सितारे दुनिया में
जो सिर्फ़ काँच के दरवाज़े से नजर आयें
नागफनी से काँटे इनमें,खपरैल से कठोर दिखते
लौह बना खुद को ,काँच से टूट अंदर बिखरते
बाधाओं में पर्वत बन समक्ष खड़े रहते
परिवार की ताक़त,सबके पापा ऐसे होते।