मिट्टी में सिमटे
मिट्टी में सिमटे


एक समय था तब
गुलामी की जंजीरों से जकड़े थे सब।
चाहे अपनी जान की बाज़ी हो
या त्याग हो घर का
अपनों की बलिदानी हो
या फांसी से सम्मानित किया गया हो
कर्तव्य अडिग किए जा रहे थे वो।
पर क्या बदला है आज के दौर में
जान तो अभी भी बही जा रही
सीमा में खड़े जवान को तो देखो
ना भय की शिकन, ना ही अपनों से मोह
बस देश के प्रति कार्यरत
कर्तव्य अडिग किय जा रहे वो।
इस मिट्टी में है खुशबू एक भीनी सी
लहू से सनी है यह कितनी अपनी सी
शहीद जवानों के शरीर तिरंगे से लिपटी
आखिरी इच्छा जो थी इनकी
तिरंगे की गोद में बस लेट जाना,
सो जाना बस आखिरी चैन की नींद।
हर एक की ज़िम्मेदारी है ये
भारत माता की आंचल में सिमटे इन
वीरों की खातिर
तुम रुको ना कभी, तुम झुको ना अभी
बस मिट्टी से मिलने की ख्वाहिश हो
आखिरी सांस तक,
अपने विश्वास की लौ इस मिट्टी पर
जलाए रखना तब तक।