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Dr. Trisha nidhi

Tragedy

3  

Dr. Trisha nidhi

Tragedy

असमंजस

असमंजस

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एक असमंजस में फसी हूं

तुम्हे बोलूं या फिर से डायरी के पन्नो को खोलूं 

अब जब आंखों से नींद का साथ भी छूट गया 

जिस तरह तुम्हारा मुझसे रिश्ता मानो खोंसा गया ।


एक बात हो गई , छोटी सी बात 

क्या माफ नही कर सकते तुम,

क्या इस रिश्ते से बड़ी ये गलती है

जिसे तोल न पा रहे हो तुम।


अपनी गलती के आग में मे भी तो जल रही हूं

अपनी जिंदगी जटिल एमजीटीआई जा रही है,

जीने की ख्वाहिश तो खत्म हो गई हो मानो

इस लौह को अब बुझाना चाह रही हूं।


मेरी गलती मेरे सारे समर्पण से बड़ी कब हो गई 

आखिर ये बता दो अब तुम मुझे,

मेरी एक भूल मेरे प्यार की सारी कीमत ही टटोल गया 

आखिर तुम कब तक नाराज़ रहोगे मुझसे? 


एक असमंजस में फसी हूं

तुम्हे बोलूं या फिर से डायरी के पन्नो को खोलूं ।


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