साथ चलें
साथ चलें
लग रहा था जब,
नियंत्रण पर लग रहा था सब,
शायद २०२१ था हमारी ओर
पर पता था किसे, ले लेगी दुनिया
एक नया मोड़,
मोड़ जो था हमारी कल्पना से परे,
मोड़ जिसके बारे में सोचकर ही
रूह काँप उठे,
मोड़ जो ना देखा था किसी ने,
ना था सुना,
पर हर किसी की ज़हन में है यह बुना।
करोना की दूसरी लहर ने दी जब दस्तख,
होश में ना थे लोग, न
सरकार अपनी कर पाई परख,
मरीज़ों की संख्या बड़ती ही जा रही थी,
अस्पताल की सेवाएँ सब सीमित थी,
चाहे वेंटिलेटर की कमी, या ऑक्सिजन
की सीमित आपूर्ति,
कोहराम का दृश्य था,
इसकी पहले कभी ना की किसी ने अनुभूति।
चिकित्सक कोशिश करते निरन्तर,
इस स्वस्थ आधारिक संरचना में बुन कर,
जो टूट रही थी, बिखर रही थी
क्यूँकि संख्या मरीज़ों की बस बड़ती हाई जा रही थी,
साँसें परास्त होते,
आँखों से आँसूँ पीते
हर कोई लड़ रहा था लड़ाई एक,
अपनी और दूसरी अपनो को देख ।
पर जीतने की चाह में आगे बड़ते
टूटें परिवारों को फिर से संजोतें,
मुश्किलों से आगे निकलकर
हिम्मत करो, मौत को परास्त कर।