बूँद
बूँद
सृष्टि है उल्लासित
प्रकृति हुई सुमधुर सुवासित
क्रीड़ा कर रही हर पर्ण-पर्ण पर
नव व्योम मुस्कुरा उठा काला बादल झूम उठा
नाच उठा मयूर पंँख फैलाए
भू की धानी चुनर उड़ उड़ जाए
कोयल कूक पपीहा टेर सुनाए
वह सरसराहट अमृत के बूंँदों की
पाजेब सी छम- छम झंकृत करती जाए
अठखेलियांँ खेलती वह वैजयंती पर
गिरकर मिट्टी में सोंधी खुशबू फैलाए
देख पवन ये अनुपम छटा
होठों से मंद-मंद मुस्कुराए
धार नदी की बांँकी चितवन देखें
ठिठक-ठिठक घुंँघट खुद यूँ सरकाए
यात्रा जो पूर्ण कर रही वह रिमझिम बूँदें
कभी धरा पर कभी हरित पर्ण पर
कभी पवित्र पावन गंगाजल बन जाए
सरस रसीली अनुपम रंगरेली
श्रवण कोकिल थिरके तरू की वो डाली
प्रकृति की भूमंडल चारों ओर दुर्बा पर
सर्वत्र जुगनू सी चम-चम चमक जाए
बहक जाए समीर में ठहर जाए सावन की अंजुरी में
प्रेम पियासी सीप में उज्जवल सी श्वेत
सच्चा मोती बन जाए।