खुशियां - - दो शब्द
खुशियां - - दो शब्द
खुशियाँ तो
हर किसी के दिल में बहुत पास होती हैं-
सच तो यह है कि
खुशियाँ एक अहसास होती हैं-
मां की गोदी में
लेटा करते हुए स्तनपान
और कभी मां के प्रेममय स्पर्श से ही
पा लेता है ढेर सारी खुशियां
इसलिये बेवजह मुस्करा देता है-
और उधर मां का मातृत्व भी
उस नन्ही सी खेलती-मुस्कराती
जान में अपना सब कुछ पा लेता है-।
थका हारा पुरूष
अंधेरी रात में भी अपनी प्रेयसी बाहों में
अपनी थकान को मिटाता है-
कुछ पलों के लिये ही सही दांपत्य जीवन में खुशियां तो पा जाता है-
पत्नी या प्रेयसी
अपने पति या प्रेमी के सीने पर सर रखकर अपनी उंगलियों से
अपने प्यार के निशां गोदती है-
शायद इसी में छुपी
अपनी खुशियां खोजती है-
मां-बाप
खुद भूखे और फटे हाल रह कर
अपने बच्चों के सुखद भविष्य के सपने बुनते हैं-
और शायद अपनी खुशियां छोड़ कर
उनकी खुशियों में अपनी खुशियाँ चुनते है-
हर व्यक्ति की
खुशियां और मंजिल अलग होती है-
कोई रूमाल में खुशियां समेट लेता है
और किसी की चद्दर भी खाली होती है-
खुशियां
गरीबी और अमीरी का भेद नहीं करती है-
अंतर केवल लकड़ी का होता है
किसी की चिता साधारण और किसी की चंदन में जलती है।
