एक कलम गुलाब की
एक कलम गुलाब की
उसके तन के एक हिस्से को कर दिया मैंने उससे जुदा,
फिर भी चेहरे पे मुस्कान की कैसी थी उसकी ये अदा ।
शायद उसे भी इस बात का इल्म होगा,
उसके तन से जुदा होकर भी कहीं कोई गुलाब जरूर खिला होगा ।।
मेरे दिए दुख की ना थी उसके चेहरे पर कोई शिकन,
सोचने लगी मैं की क्या सोचता होगा उसका मन।
पर ये देख मुझे अपनी ही सोच बहुत कम नजर आने लगी,
खुशियां बांटने के लिए त्याग करना, ये था उसका असली फन ।।
कांटों के बीच रहकर भी चेहरे पे उसके रहती है सदा मुस्कान,
इससे बड़ा सबक भी क्या कोई सिखा सकता है तुझे , ए इंसान ।
छोटी छोटी कमियों पर भी कितना बिखर जाता है हमारा मन,
एक पल सोच के तो देखो, कांटों से घिरा रहता है सदा इसका तन ।।
प्रेम का है ये प्रतीक और पूजा में भी है इसका एक उत्तम स्थान,
अहमियत का अपनी फिर भी ना है कोई घमंड और ना ही कोई गुमान ।
इसकी खिली मुस्कान से खिल जाता है सबका मन।
खुशबू से इसकी महक जाता है सारा आलम और दूर हो जाते है गम ।।
ठान ली है मैंने भी अब एक बात,
इस एक कलम से उगाऊंगी कई सारे गुलाब ।
इनके माध्यम से पहुंचाऊंगी सारी दुनिया में ये बात-
कांटों के बीच रहकर जब मुस्कुरा सकता है गुलाब,
तो क्यूं ना मुस्कुरा कर करें हम भी जीवन नैया को पार ।।