वाणी
वाणी
आप कटु वचन बोलकर
शत्रु न पैदा कीजिए
मीठी वाणी बोल के
हृदय तृप्त कर दीजिए
रसना वश में रखिए सदा
मिथ्या न बोलें यदा कदा
कानों में मिश्री सी घोल
बिगड़ी बनाते मीठे बोल
मधुर बोल ही तो सदा
हमें प्रतिष्ठा दिलवाते हैं
श्रवण द्वार प्रविष्ट कर
तन-मन भी सुख पाते
नासमझ होते कुछ लोग
लगता जिन्हें दर्प का रोग
दूजे का करके अपमान वे
करते अपना सुख भोग
क्रोध सबका होता दुश्मन
जो बुद्धि विवेक हर लेता है
है समझदार यहां वहीं
जो वाणी वश में कर लेता है।