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Rajeev Rawat

Inspirational

4  

Rajeev Rawat

Inspirational

गंगा () - दो शब्द

गंगा () - दो शब्द

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गंगा

अब तुम भी

भारतीय नारियों की तरह

हम पुरुषों द्वारा बांधी गयी कथित सीमाओं को तोड़ कर

आगे बढ़ रही हो-

और

संस्कृति और संस्कारों के नाम पर थोपी गयी ज्यादतियों को

अपने क्रोध, तर्क और वेग से

विध्वस्त कर रही हो-

आखिर हमने तुम्हारे अस्तित्व को

अपनी स्वार्थ की वेदी पर करते हुए बलिदान

तुम्हारे चाहे या न चाहे अहसासों को कब पहचाना है-

कभी मल, कभी शव,

कभी गंदे कारखानों के गंदे पानी के नालों से

और कभी ओछी प्रवृत्ति से

तुम्हारे दिल के दर्दों को कब जाना है-


हमारी मनुष्यता तो देखिये

तुम्हारी पवित्रता बनाने की योजनाएं लेकर

बड़े बड़े होर्डिंग और पेपर - टीवी पर

दिन रात छा गये-

गरीबों और टेक्स देने वाले ईमानदार लोगों की

कमाई को कुछ लोग

बंदर बांट करके बिना डकार लिये खा गये-

सच तो यह है कि

कल की तरह सहृदय, सरल,

कोमल, निर्मल, निश्छल, निष्कलंक,

जीवनदायिनी का आंखों में आज भी वही चित्र है-

गंगा और नारी

दोनों को हम मानवों ने अपने मनुष्य के घमंड में ही किया है कलंकित

वरना

वह कल की तरह आज भी पवित्र है--

                          


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