STORYMIRROR

Shatakshi Sarswat

Inspirational Others

3  

Shatakshi Sarswat

Inspirational Others

"उस मंजिल की आस में"

"उस मंजिल की आस में"

1 min
11.6K

रिम-झिम, रिम-झिम बरसा पानी,

कुछ इस कदर, उस बरसात में,

आँखों के भी अश्क न दिखे,

कुछ उस कदर, उस बरसात में।


सर उठाएं चल रही थी,

उस एक मंजिल की आस में,

पर वो भी दिख न पाई दूर से,

उस धुँधले आकाश में।


चलते-चलते टकरा गई,

एक अजनबी एहसास से,

हाथ थामा, फिर चल पड़ीं,

उस एक मंजिल की आस में।


आगे था लहरों का बवंडर,

कुछ इस कदर, उस बरसात में,

कि लड़खड़ा उठे पाँव भी,

उन लहरों कि एक मात्र आवाज़ से।


मुश्किल था आत्मविश्वास बाँधना,

चलते हुए, उस पथ पे,

पर हार ना मानी और बढ़ती गई,

उस एक मंजिल की आस में।


   


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational