STORYMIRROR

Shatakshi Sarswat

Abstract

4  

Shatakshi Sarswat

Abstract

ब्रह्माण्ड का संदेश

ब्रह्माण्ड का संदेश

1 min
753

ब्रह्माण्ड ने अब कुछ रुख सा बदला है,

जिस के चलते हवाओं ने भी अपनी चाल को मोड़ा है।


किसी को तो आज मैनें अपने आस पास पाया है,

इस ब्रह्माण्ड ने कुछ तो संदेश मुझे बताया है।


प्रकृति में भी आज उथल-पुथल सी दिखाई पड़ती है,

क्योकिं लोगों ने अपने स्वार्थ के लिय प्रक्रति को भी ना छोड़ा है।


बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा ने आज लोंगो के

मन से शान्ति के प्रतिक को हटाया है,

और मनुष्य ने मनुष्य को ही इस युग में अपने आगे झुकाया है।


इस ब्रह्माण्ड का संदेश लोगों ने झुठलाया है,

और खुद को खुद से ही विनाशकारी शक्तियों की और बढ़ाया है।


बाहरी सुख ने आज मनुष्य में आंतरिक सुख को धुँधला बनाया है,

मनुष्य ने अपने मस्तिष्क से प्रोद्यौगिकी को भी आगे बढ़ाया है,


परंतु न जाने क्यू इस युग में

मनुष्य ने उस आद्रश्य शक्ती को झूठलाया है।


समय समय पर ब्रह्माण्ड ने प्रकृति द्वारा

मनुष्य को बहुत कुछ समझाया है,

फिर भी मनुष्य को वो समझ ना आया है।


क्योंकि कलयुग ने अपने झंडे को एक चरम सीमा पर लहराया है,

और लोगों के मस्तिष्क को अपने अनुसार चलाया है।


किसी को तो आज मैनें अपने आस-पास पाया है,

कोई तो संदेश इस ब्रह्माण्ड ने मुझे बताया है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract