"वो मन की तरंग"
"वो मन की तरंग"
वो ओस की बूँदें,
वो ठंडी हवाएँ,
लहराना उनका जैसे सर्द हवाएँ।
वो मोरनी सी चाल,
वो घटाओं जैसे बाल,
झूमना उनका जैसे हवाओं में हो कमाल।
वो चाँद सा मुखड़ा,
वो टिम- टिमाती हुई आँखें,
कहती थी हमसे पास आ जाओं हमारे।
वो गुन-गुनती हुई आवाज़,
वो होठों से निकले हर एक अल्फाज़,
कह जाती थी हमसे हर एक बात।
वो फूल सा मुरझाना,
वो बसंत जैसा आना,
हर बार आके फिर उनका कहीं खो जाना।