सर्वोपरि शक्ति
सर्वोपरि शक्ति
एक औरत की शक्ति सर्वोपरि होती है
वो अनेक रिश्तों से बंधी होती है,
बेटी, माँ, बहू, पत्नी और कई अन्य
रुपों मे अपने कर्तव्यों को निभाती है।
कभी प्रेम से,
तो कभी सहजता से,
वो सभी रिश्तों को संजो के रखती है।
कभी सरलता से,
तो कभी समझदारी से,
वो सभी कि परेशानियों को सुलझाती है।
तो कभी समझौते को अपनाती है।
फिर भी वो सदा मुस्कुराती है,
कभी किसी से भी वो
नाराज़गी नहीं दिखाती है,
बदले में वो बस इज्जत,
सम्मान और प्रेम चाहती है।
एक औरत देवी यूँ ही नहीं कहलाती है
बस-
उसकी शक्तियों को मत ललकार ना,
उसके आत्मसम्मान को ठेस मत पहुँचाना,
क्योंकि सारी देवियों में से एक देवी
"दुर्गा" का रुप भी कहलाती है,
और वो ही अकेले सही समय आने पर,
सभी भूले- भटकों को फिर राह दिखाती है।
"जिस दिन औरत 'दुर्गा' बन जाएगी,
उस दिन दानवों का संहार कर जाएगी।
जो कहते है- औरतों को कमजोर,
आज वही औरत त्रिशूल उठाएगी।
इस युग मे औरत खुद से अपनी पहचान बनाएगी,
बिना किसी के सहारे के वो आगे बढ़ के दिखाएगी।
अब एक औरत ही इस संसार में बदलाव लाएगी।"