हिन्दी
हिन्दी
है संकल्पना सबकी,
श्रेष्ठता इसकी दिखाना है।
परिवर्तन की लहर चलाकर,
दायित्व अपना निभाना है।
है समर्थ समरूप
हर मानव इससे अभिभूत।
जन-जन के संवादों में
हिंदी का वर्चस्व दिखाना है।
परिवर्तन की लहर चलाकर
दायित्व अपना निभाना है।
कई भावों को प्रतिध्वनित करती।
समर्थ सक्षम ग्राहक है।
हवा में इत्र-सी रहकर।
संस्कारों की संवाहक है।
सनातन संस्कृति की संप्रेषक।
जीवन मूल्यों की परिचायक है।
अपनी बनावट पर इठलाती।
सहज सरल सुखदायक है।
नदी सी प्रवाहित
हर मोड़ पर कुछ नया दिखलाती है।
साहित्य की धनी हिंदी
कितना कुछ सिखलाती है।
है धरोहर विश्व की
दायित्व कई निभाती है।
सद्भाव सद्गुणों की अल्पना
प्रतिदिन यह सजाती है।
जीवन के हर प्रहर में
जीवंत लहर लाई है।
जन- जन की भाषा हिन्दी
प्रगति अचंभित आई है।
प्रथम राजभाषा का गौरव
राष्ट्रभाषा इसे बनाना है।
है जड़े इसकी गहरी लेकिन
अधिक गहरी बनाना है।
घर घर में संवाद हो रहे
समृद्ध भाषा लानी है।
वैज्ञानिकता लिए हुए हैं,
दुविधा सारी हटानी है।
