हिन्दी मेरा अभिमान है"
हिन्दी मेरा अभिमान है"
कितनी मृदुल, सहज, सुकोमल यह भाषा है।
स्वर-व्यंजनों में छुपा अद्भुत इसका एक संसार है।।
उद्गारोंं और भावों की अभिव्यक्ति का चमत्कार है।
अन्तर्मन की वाणी अपनेपन का इसमें मीठा भान है।।
बोले भले कितनी बोलियाँ सब पर इसका राज है।
दिशा-दिशा गुंजित इससे चहके -महके-मन को ये भावे ।।
बनकर कवियों की वाणी, किया इसने अपना श्रृंगार है।
यही हमारी भाषा है, अभिव्यक्ति की यही परिभाषा है ।।
लय-ताल-छंद-रस-अलंकार -रीति-वक्रोक्ति हैं इसके गहने
सभी भाषाओं की है ये रानी इसके माधुर्य के क्या कहने।।
कर नहीं सकेगी कोई भाषा राज इसकी अपनी शान है।
बनी सयानी हर भारतवासी की बसती इसमें जान है ।।
मनोरथ बस अपना ये, बनकर इस रथ के सारथी।।
करें प्रचार और प्रसार ,पड़ने न देंगे धूमिल इसे हम।
हो जाए हर बात सरल, पकड़ लिया जो दामन इसका।।
लहरायेगा परचम, गूंजेगी ये जहाँ में इस पर हमें अभिमान है ।।
