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Ashish Rahangdale

Abstract

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Ashish Rahangdale

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नटखट बूंदों की अठखेलियां

नटखट बूंदों की अठखेलियां

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बारिश की झड़ी लगी बूंदें

वसुंधरा की गोद में बारी-बारी गिरने लगी।

चंचल नटखट बूंदे यहां वहां लुड़कने लगी ;

शरारती इतनी की एक जगह शांत बिल्कुल ना ठहर सकी।


जैसे ही एक बूंद पेड़ के शिखर पर गिरी दूसरी बूंदे भी

साथ-साथ उस पेड़ पर फिसलने लगी।

बेचारी नवीन कोपले भारी वजन बूंदों का संभाल ना सकीं

देखो तो बूंदे कभी इस पत्ते तो कभी उस पत्ते पर कूदने लगी।

कुछ बूंदे मजबूत पत्तों की आड़ में छिप गई तो

कुछ फलों की ऊपरी सतह में लटक गई।


कभी एक डाली से दूसरी डाली में है झूलती

तो कभी पंछियों के पंखों में बैठकर उन्हें गुदगुदी हैं लगाती।

पंछी बूंदों की शरारत सहन ना कर पाते उन्हें झटक कर उड़ जाते। 

फिर भी बूंदे अठखेलियां करने से बाज ना आती।


वसुंधरा पुकारे बूंदों को गोद में दुलारने,

नटखट बूंदे मदमस्त हैं खेलने में।

वसुंधरा ने वायु को न्यौता भिजवाया

अरे भाई ! बता दो नटखट बूंदों को की वसुंधरा ने है बुलाया।


 वायु को भी सुझा एक उपाय चलो थोड़ी बूंदों संग मस्ती हो जाए

वायु ने हल्का सा अपना वेग बढ़ाया , पेड़ों को धीमे से हिलाया।

 टप -टप गिरने लगी बूंदे एक डाली से दूसरी डाली वसुंधरा ने

आंचल फैलाकर बूंदों को अपनी गोद में समाया।


नटखट बूंदे अब खेल -खेल कर थक चुकी हैं

वसुंधरा का प्यार दुलार पाकर।

लगता है अब वे नदियों में, सागर में, कुओं में हैं समा चुकी।


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