आंदोलन की लाठी लिए कोसता है खुद को कि वह, किसान क्यों है। आंदोलन की लाठी लिए कोसता है खुद को कि वह, किसान क्यों है।
बचपन को सहलाते हैं जीवन को जगाते हैं फिर सेI बचपन को सहलाते हैं जीवन को जगाते हैं फिर सेI
दुख रखने की जगह धीरे-धीरे कम हो रही है। दुख रखने की जगह धीरे-धीरे कम हो रही है।
नाम मात्र के तूफान से कागजी महल ढह जाते हैं। नाम मात्र के तूफान से कागजी महल ढह जाते हैं।
नानी ने रखा है टोकरी भर भर के आम अब उन्हें खाने की बारी आई। नानी ने रखा है टोकरी भर भर के आम अब उन्हें खाने की बारी आई।
कष्ट सहूँगा अपमान नहीं राष्ट्र की जरूरत हूँ मैं अर्थहीन जमात नहीं ! कष्ट सहूँगा अपमान नहीं राष्ट्र की जरूरत हूँ मैं अर्थहीन जमात नहीं !