किसान
किसान
एक ज़मीन को
कितने टुकड़ों में
बाँटा जा सकता है
जानता है वह
वह किसान है।
दरारें अब नहीं खटकती
उसकी आँखों में
हर बीज लोहे से टकरा
जब बजता है
तब धरती केे कलेजे को
झाँक सकता है वह।
पूरी नाँव बन जाती है
उसकी टोकरी
बहुत चिल्लाते हैं फसल
उसकी आशा और आँसू
टक गये हैं इन्द्रधनुष पर।
घर, कर्ज़ और बेटी पर
बहुत रोता है
सरकार को नहीं जानता
इसीलिए आंदोलन की लाठी लिए
कोसता है खुद को
कि वह, किसान क्यों है।
