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Shailaja Bhattad

Drama

4  

Shailaja Bhattad

Drama

बचपन

बचपन

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बचपन खिल गया

जीवन मिल गया।

छूटे थे जो बस्ते कभी

रूठे थे जो स्कूल सभी

नदारद थी जो खिलखिलाती हंसी।

सब किस्सI कहानी बन गया

पतंगों को आसमान मिल गया

बचपन खिल गया

जीवन मिल गया।


अक्षर, अक्षर से ही मिलते थे जो कभी

बचपन से रूबरू अब होने लगे

किताबों पर नए जिल्द चढ़ने लगे।

बचपन खिलने लगे।

जीवन से मिलने लगे। 


पहिए जो जंग से रुक गए थे कहीं

अब रास्तों पर दौड़ते दिखते हैं हर कहीं।

किलकारियों के बीच डोलते हैं

बचपन संग  खिलखिलाते हैं

जीवन से मिलते मिलातें हैंI 


बेट जो बाॅल की चोट के लिए तड़पता था

आज चौके और छक्कों से बातें करता है।

बचपन को पास बुलाता है

जीवन से मिलवाता है 

बचपन खिलखिलाता है I


बांस की टोकरी में सोए पड़े थे जो खिलौने

आज बच्चों के साथी बन गए हैं फिर से।

बचपन को सहलाते हैं

जीवन को जगाते हैं फिर सेI


बारिश की पहली फुहार ।

गली- गली में कागज की नाव।

ओझल रही जो आंखों से ।

 अब हर ख्वाब सहेजती है।

बचपन को जगाती है।

 जीवन से मिलवाती है।


बगिया वीरान थी जो कभी ।

आज इस्तकबाल करते नहीं थकती है।

 झूले पर गुड़िया बलखाती है।

फिसल पट्टी पर जीवन की कहानी दौड़ जाती है।



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