बेरोजगार और भिखारी
बेरोजगार और भिखारी
मैं ढूंढता हूँ रोटी
टूटे भिखारी सा
लेकिन
वह कूड़े की ढेर में और
मैं अखबार के पन्नो में
दोनों चलते हाथ फैलाये
वह टोकरी लिए
मैं डिग्री लिए
फिर भी
मैं बेरोजगार हूँ भिखारी नहीं
रोटी चाहिए मुझे कृपादृष्टि नही
बदले में मेहनत दूंगा स्वाभिमान नहीं
कष्ट सहूँगा अपमान नहीं
राष्ट्र की जरूरत हूँ मैं
अर्थहीन जमात नहीं
जातिगत राजनीति तेरी
समाधान नही, समस्या है मेरी
बदलना होगा इस व्य्वस्था को
जिसमे भविष्य की आस्था नही ।।