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Omdeep Verma

Drama

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Omdeep Verma

Drama

रिश्तों की पोटली

रिश्तों की पोटली

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जो मुझे हमेशा अपना अपना कहते थे 

रिश्तो की महफिलों में जो

बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे।

 

ऐसा कोई काम नहीं जो 

तुम्हारे लिए हम कर नहीं सकेंगे 

यह जिंदगी तुम्हारे नाम है 

हर सुख दुख में साथ ही रहेंगे।


जब आई बात निभाने की तो 

सब दूर होते गए 

हवा में बनाए थे पुल अपनत्व के 

सब चकनाचूर होते गए।

 

अगर मुझे पहले से पता होता

मतलबी रिश्तों का 

तो मैं बनाता ही नहीं 

तू मेरा-मैं तेरा वाली

झूठी रीत दुनिया की 

अपनाता ही नहीं।


जिंदगी गुजर जाती है

जिन रिश्तों को बनाने में 

वह यहीं रह जाते हैं 

बस नाम मात्र के तूफान से

कागजी महल ढह जाते हैं ।


आज उतार कर फेंक दी

रिश्तों की टोकरी 

जिसको मैं जिंदगी भर

उठाकर फिरता रहा 

कभी ना गिरने दिया इसको

भले ही खुद लड़खड़ा कर

गिरता रहा।।


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