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दफ्तर का कौआ

दफ्तर का कौआ

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वो हर सुबह ही तो आता है

खुद की चोंच को दफ्तर में

लगे शीशे से टकराता है


कुछ लोग कहते हैं कि

खुद कि परछाई देखता होगा

कोई उसका संगी साथी

अंदर फँसा होगा।


इसलिए आजाद करवाने की

कोशिश करता होगा

लेकिन हर सुबह ही

क्यों वो आता है


क्या आकाशवाणी से

उसका कोई पुराना नाता है

या ऐसा भी हो सकता है

कि उसका कभी यहाँ

कोई आसियाना हो


उसके परिवार या दोस्तों को

कोई याराना हो

या वो भी चाहता हो

कुछ कहना सबसे


या आता हो

खैरियत पूछने हमसे

कुछ तो होगा ही

ऐसे ही संसार का सबसे

चालाक पंछी नहीं कहलाता है।


ये अलग बात है कि

एक कहावत भी है

कि चालाक कौआ 

गंदगी खाता है


मगर ये भी तो नहीं कि

गंदगी खाना उसकी फितरत है

यूँ ही कुछ भी कहलाना

उसकी हसरत है।


बार बार यूँ ही चोंच पटक कर

खुद को क्यों परेशां करेगा

कोई ख्वाहिश तो होगी

यूँ ही क्यों कोई इबादत करेगा


बचपन में प्यासे कौए की कहानी

पढ़ते थे घड़े में कम पानी से

कैसे प्यास बुझायेगा ये सोचते थे


कितना काला है और

आवाज कितनी कर्कश है

फिर भी इतनी बुद्धि

कैसे मिली सोचते थे


यूँ ही हर रोज उसकी

आवाज मुझको हैरान करती है

क्या है ऐसा जो हर रोज

चोंच पटकता है वो परेशान करती है।


मैं भी देखता हूँ जब आइना अक्सर

सिर्फ खुद के बारे में सोचता हूँ

चेहरा कितना साफ़ है कैसे

मेरे बाल हैं ये ही सब सोचते हैं


तो क्या वो भी देख कर खुद को

भगवान या हमसे कुछ

शिकायत करता है

क्यों इतना है अंतर

इस दुनिया में पूछता है


क्योंकि वो कुछ समय

के लिए ही तो आता है

अगर किसी को छुड़ाने कि

कोशिश कर रहा होता तो और

क्यों नहीं दोस्तों को संग लाता है


समझदारी की सारी

लकीरें छोटी लगती हैं

क्या है राज, क्या है कारण

क्यों असलियत

खुद को खुद में लपेट कर रखती है


मैंने आज थोड़ा उसी से पूछने की

कोशिश की कुछ गौर से

उसको समझने की कोशिश की

शायद वह मेरी बातों को

समझ नहीं पाया था


इसलिए मेरे सवालों का

उत्तर नहीं दे पाया था

आया था वो हर रोज की तरह

आज भी इबादत करने


लेकिन मेरे सवालों को

कोई हल नहीं दे पाया था

हाँ मुझे देख कर कुछ गर्दन हिलायी थी

खुद से मैं समझ लूँ कुछ भी


उसकी आँखें देख कर मुस्कुरायी थी।


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