नब्बे के दशक का प्यार !
नब्बे के दशक का प्यार !
एक तरफ
जो होता है नवी दसवीं में
थोड़ा कच्चा थोड़ा पक्का कि यही है बस जो है
झुंडों में सहेलियों के बीच कोई
एक बाकी तो दिखते ही नही
साथ क्लास में रास्तों में आते जाते
साइकिल से कहीं पैदल कहीं
शादी व्याह में किसी के यहाँ
हर समय चेहरा बस एक
क्या सोना क्या जागना !
ज़िन्दगी बस साथ रहने भर की तमन्ना
दुनियां बैरी जो कुछ बोल
भर दे इस सब के बीच
हम ही हम तुम ही तुम बस
जगजीत सिंह की ग़ज़ल सा
गुलज़ार की शायरी
राहुल रॉय अन्नू अग्रवाल के जैसा
कॉलेज की यूनिफॉर्म में अलग
घर के कपड़ों में कुछ और
आर्चीज के कार्ड की महक और
आड़े तिरछे शब्दों में लिखा नाम
कानों की सुन्नपन बढ़ते दिल की धड़कनें
कल ये कहेंगे ये ही सोचते सोते
बनते सपने वही सब होते हुए
एक नज़र भर देख लें भले आते जाते
स्कूल कॉलेज से ही सही घर के मोड़ तक
दूसरी तरफ
थोड़ा सा देखना
हल्की सी मुस्कान
पास से गुजर के दूर जाते
हुए खिलखिला के हँस देना
छत के कोने पर बस खड़े हो कर बस यूं ही
पूछे कोई कुछ तो बस दो
कदम चल के रुक जाना
पलटना फिर मुस्कुरा के चल देना
चिट्ठी पत्री में गन्दी सी हैंड राइटिंग से कुछ
अजीबोगरीब ऐसा लिखना की
समझने वाला समझता रह जाये
सीधी बातों के कभी सीधे जबाब न देना
तरस भी न खाना की कोई सो भी
न पायेगा पूरी पूरी रात
एक लाइन कुछ ऐसी बोल के
निकल जाना कि बस जान ही निकल जाए !
अब सब मगन हैं अपनी अपनी ज़िन्दगी में
अलग अलग साथियों के साथ !