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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Tragedy

"बिना मतलब दुःख"

"बिना मतलब दुःख"

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तू क्यों होता है, बिना मतलब दुःखी

इस संसार में कोई नहीं जो है, सुखी

सबके दुःख प्रकार भिन्न-भिन्न चूंकि

कोई पैसे से, कोई तन से यहां, दुःखी

सबसे ज्यादा वो रोता, मारकर दहाड़े

जो अपने इस मन से है, ज्यादा, दुःखी

सच मे अपने दुःख की बात है, झूठी

लोग दूसरों के सुख से ज्यादा है, दुःखी

गर दुःख की आपस में बदलेंगे, रुचि

भूल जाएंगे अपने दुःख की स्वरूचि

अपना दुःख, दूसरों के दुःख से देखे

बिल्कुल कम है, जैसे गहनों में अंगूठी

हमें ईश्वर ने दो वक्त की दी है, रोटी

बहुत लोगों को न मिल पा

ती है, रोटी

बहुत सारे तो भूखे ही सो जाते है,

भूख से हो जाती, बहुतों की छुट्टी

उनकी किस्मत सदा रहती है, फूटी

जो खाता रहता है, लालच की बूटी

मनुष्य के दुःख का कारण व्यर्थ मोह

छोड़ दे व्यर्थ मोह, होंगे आप सुखी

धृतराष्ट्र के पुत्र मोह से हुई, महाभारत

इस मोह कारण कई कश्तियां है, डूबी

जो बांधता जीवन से ईश्वर भक्ति डोर

वो इस जीवन मे होता न कभी दुःखी

अब मेरी बात सुनो, सुख की अनूठी

जिसके पास संतोष वही रहता, सुखी

उनकी इस दुनिया मे प्यास है, बुझी

जिसके भीतर बहती संतोष की नदी

"


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