बेसब्र
बेसब्र
छलकत जाए ये गगरी मोरी,
हाय! ये कमर लचकाये.
चित्त बेसब्र होकर
जवानी मोरी परखत जाए.
बहती धारा-सी बिलखते ये पल
मेरी तीज की थाल सजाए.
तुमरी सजनी आस में बैठी,
मनवा सुध न पाए.
बिखरे केशू सूर्यप्रभा से ढकते जाए
तुमरी आस में सिलवटें ये बढ़ती जाएं.
ओ मोरी, बेचैनी का रंग भी अब ढलता जाए.
रैना बीती जाए
बारंबार दर्पण अपनी ओर बुलाए.
मन का साज और मन का पीर
दोनों हैं दिखते एक से,
समय के साथ-साथ आप बीते जाएं.
आओ, अब गगरी में पानी कम,
अश्रु की नदी बहती जाए.
मन उपवन में मोरी माया
पनघट पर बीती जाए.