बंटवारा
बंटवारा
जब विरासतों के हो हिस्से
तो उन लोगों के भी मशहूर हो किस्से।
जिन्होंने ज़िम्मेदारियाँ निभाई भरपूर,
रास्ता तय किया जवानी से बुढ़ापे तक बहुत दूर।
लालच की भनक भी इनमें न आ पायी,
कड़ी धूप में ज़िन्दगी ने की इनकी खूब कुटाई।
माँ बाप का भी सहा बुढ़ापा सिर्फ बड़ों ने,
जबकि ज़िन्दगी की मौज मैं रह गए छोटे, नमूने।
अब हिस्से सबको चाहिए बराबर,
लेकिन ता उम्र ज़िम्मेदारियों से रहे बेखबर।
अब सच कहना क्या यह इन्साफ है ? छोटों के हाथों में हो लडडू,
एक तरफ वारसा, दूसरी ओर गैर ज़िम्मेदार बने यह टट्टू।
फिर भी भरा न कभी इनका पेट,
ज़िम्मेदार बनने मैं लेकिन हर बार हुए लेट।
इतिहास गवाह है के छोटे होते ही है सेल्फिश,
बड़े तो दूसरों पर लुटाने मैं हुए ज़िन्दगी भर मुहलावीज़।
ज़िम्मेदारी और माँ बाप के कंकास के अलावा कुछ भी न आया बड़ों के हिस्से,
दुनिया मैं तो बच जायेंगे छोटे, लेकिन कौन बचाएगा इन्हें आखिरत के कहर से ?
