रोशनी
रोशनी
आज फिर उस टूटे दिल को थामे बैठे हैं,
हाथों में कलम है, आँखों में आंसू लिए बैठे हैं।
सर्द हवाओं की संसाहट है गूंज रही बस,
उस तपती आग की आतिश पर नज़रें गड़ाये बैठे हैं।।
चीख़ रहीं ये दीवारें भी अब मुझपर,
कब तक ख़ुद पर बोझ बनते रहोगे?
होती रहती है दस्तक उस दरवाज़े पर,
कब तक यूँ ही बस ख़ुद से ख़फ़ा होते रहोगे?
रात बड़ी काली, इससे पहले लगती ना थी,
रेत की तरह हर चीज़ यूँ फिसलती ना थी,
क्या पता कल कोई रोशनी उस झरोखे से आयेगी,
हसरत कभी जिस की ऐसी लगती ना थी।।