STORYMIRROR

Akshay Kumar Singh

Drama Others

3  

Akshay Kumar Singh

Drama Others

रोशनी

रोशनी

1 min
139

आज फिर उस टूटे दिल को थामे बैठे हैं, 

हाथों में कलम है, आँखों में आंसू लिए बैठे हैं। 

सर्द हवाओं की संसाहट है गूंज रही बस, 

उस तपती आग की आतिश पर नज़रें गड़ाये बैठे हैं।। 


चीख़ रहीं ये दीवारें भी अब मुझपर, 

कब तक ख़ुद पर बोझ बनते रहोगे? 

होती रहती है दस्तक उस दरवाज़े पर, 

कब तक यूँ ही बस ख़ुद से ख़फ़ा होते रहोगे? 


रात बड़ी काली, इससे पहले लगती ना थी, 

रेत की तरह हर चीज़ यूँ फिसलती ना थी, 

क्या पता कल कोई रोशनी उस झरोखे से आयेगी, 

हसरत कभी जिस की ऐसी लगती ना थी।।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Akshay Kumar Singh

Similar hindi poem from Drama