जय श्री हरि
जय श्री हरि
भजो रे मन, हरि एक नाम महा सुखदायी,
हरि नाम धरो हृदय, भय-भव पार लगायी।
हरि नाम मंदराचल माही, माथे अमृत पायी,
नाम सुमिरन करी मात्र, बैकुंठ होत बसायी।
भजो रे मन, हरि एक नाम महा सुखदायी…..
माया कटे तिन मोह मिटे, मन अंधियारा जायी,
ज्ञान मिले निज भाव हटे, आत्म उजियारा होयी।
राग द्वेष क्रोध कपट के, कपाट न खुलने पायी,
हरि हरि के रटते रटते, हरि सम भाव को पायी।
भजो रे मन, हरि एक नाम महा सुखदायी…..
हरि अनंत, हरि महिमा अनंता, हरि घट-घट समायी,
तीनहुँ लोक मा, हरि सम न पुरुष न कोई पौरुष होयी।
हरि आदि, हरि अंत, हरि ही सम्पूर्ण जीवन सत होयी,
हरि बसे जिस जन मन में, सो तन-मन हरि ही कहायी
भजो रे मन, हरि एक नाम महा सुखदायी…..