चुपके से
चुपके से
उस शाम वो अपनी सखियों संग
चोरी से चुपके से आई थी और
बेचारे के चैन -ओ -सुकून में
अपने चेहरे का घर बनाकर रहने लगी,
तब से ही
उसके साथ तो नहीं पर
उसकी परछाई संग चलने लगा था,
वसुंधरा पर रहने वाला
देखो ! कैसे हौले से चुपके से
कैसे हवा के झोंकों में मिल
सपनों की उड़ान भरने लग गया,
और अब आज
सबसे छुप -छुपाके ,
चोरी से चुपके से
अपने प्यार का इज़हार की हिम्मत जुटाकर
चुपके से हौले से
एक फूल उसे दे आया
सब चुपके से ही हुआ था ,पर
कम्बख्त फूल की खुशबू ने हल्ला मचा दिया .